- सपेरों का दुखड़ा : हमारे साँप पकडऩे पर पाबंदी लगा दी, रोजगार के मौके हमें दिए नहीं...
- हरियाणा में छत और जमीन से वंचित बहुसंख्यक सपेरा परिवार
- पढ़े लिखे सपेरा नौजवानों के हक एस.सी व एस.टी वर्ग की उलझन में फंसे
- सरकारी दस्तावेजों में बतौर सपेरा जाति दर्ज करने व एस.टी वर्ग में शामिल करने की मंग
इकबाल सिंह शांत
डबवाली: खतरनाक से खतरनाक साँपों को पल भर में पकडऩे वाले सपेरा समाज की किस्मत आज भी पिटारी में बंद है। मंगल-तारों के युग में सपेरा समाज सरकारे-दरबारे अपने अस्तित्व के लिए भटक रहा है, उसकी सुनने वाला कोई नहीं। छत और जमीन से वंचित बहुसंख्यक सपेरा आबादी बेआबाद स्थानों पर झुग्गियों में जिंदगी गुजारने को मजबूर है। ओर तो ओर मदारी, सपेरा, जोगी, नाथ और
कालबेलिया नाम के प्रचलित सपेरा जाति को सरकारी स्तर पर अपना पक्का नाम भी हासिल नहीं। जिंदगी की डगर समय साथ चलाने के लिए सपेरा नौजवानों ने ऊँची डिगरियाँ हासिल तो की, पर आरक्षण में में सपेरों को अनुसूचित जन-जाति (एस.टी.) की जगह एस.सी वर्ग में होने के कारण रोजगार की सरकारी सीढिय़ाँ इन से कोसों दूर हैं। सरकारी स्तर पर साँपों को पकडऩे पर रोक के चलते सपेरों की जिंदगी दिहाड़ी-मज़दूरी तक सीमित हो गई है। अब सरकारी स्तर पर सामाजिक और राजनैतिक अस्तित्व के लिए
सपेरा समाज लामबंद होने लगा है। जिस के अंतर्गत हरियाणा में सपेरा समाज सोसायटी का गठन करके मुहिम शुरु की है। जिस का संयोजक-कम-जिला अध्यक्ष नसीब नाथ निवासी रानियाँ को बनाया गया है। डबवाली में सपेरा जाति को संगठित करने पहुँचे संयोजक नसीब नाथ ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि कभी किसी राजनैतिक पार्टी या सरकार ने सपेरा समाज की उत्थान की तरफ ध्यान दिया। साँप पकडऩे पर पाबंदी होने के कारण ख़ानदानी रोजग़ार ठप्प हो गए। आरक्षण कोटो में एस.सी वर्ग में उन को बनता हक नहीं मिल रहा। जबकि घुमंतू कबीले होने के कारण उन का एस.टी वर्ग की आरक्षण में हक बनता है। उन्होने कहा कि हरियाणा में सपेरा जाति की संख्या लगभग 38 हज़ार है। एक अन्य सपेरे होशियार नाथ ने कहा कि प्रशासानिक अकर्मण्यता के कारण वह मौलिक सरकारी स्कीमों से वंचित हैं। 15 वर्षों से सपेरों के 50 परिवार डबवाली में सेमनाले के नज़दीक बसे हैं परन्तु अभी उन के राशन कार्ड नहीं बन सके। सपेरा समाज के संजोयक नसीब
साँपों पर पाबंदी से हुऐ रिवाज खत्म
सांपों को पकडऩे पर पाबंदी ने सपेरा जाति के रोजगार के साथ रीति-रिवाज़ भी प्रभावित किये हैं। सपेरा जाति के लोग पहले अपनी बेटियाँ को दाज में साँप देते थे। जिसके अंतर्गत अपनी सामथ्र्य अनुसार बेटियाँ को दुर्लभ प्रजाति के साँप दिए जाते थे। सपेर्यों का कहना है कि सरकार उनके रोजगार के रास्ते खोले या साँप पकडऩे की छूट दे। दोहरी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष बन्दिशें असहनीय हैं। 98148-26100 93178-26100
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