19 February 2020

सीधी फांसी मुकर्रर हो, तभी सुधरेंगे ये सरकारी सांड!

- इक़बाल सिंह शांत 93178-26100
लगभग हर कदम के लिये कानून में कायदे-नियम दर्ज  हैं। सरकार को हादसों के बाद ही उन्हें लागू करने की याद आती है। शायद कानून में उन्हें लागू करने की मद में "हादसे के पच्छात" वाली कोई लाइन दर्ज हो। यदि ऐसा है तो, फिर जो कानून मैने पढ़ा है। उसमें
बकायदा दर्ज है कि लोक सेवा के नाम पर सत्ता पर बैठने वाले और पढ़ लिख बड़े ओहदों पर पहुंचे लोग अपने फ़र्ज़ और कानून को लागू करने रत्ती भर कोताही अपनाये तो उनके साथ 'निर्भया' के हत्यारों जैसी सज़ा होनी चाहिए। क्योंकि संविधान की मूल भावना है कि यदि कानून की अनदेखी से किसी निर्दोष की मौत हो उसके लिये उस मुल्क/प्रदेश के हुक्मरान और सिस्टम प्रत्यक्ष जुम्मेवार होता है। सिर्फ वैन मालिक और स्कूल प्रिंसिपल पर मुकदमों से बात नहीं चलेगी, बल्कि प्रदेश के मुख्य मंत्री, विभागीय मंत्री, डिप्टी कमिश्नर पर भी मुकदमों से ज्यादा गंभीर कार्यवाही हो। क्योंकि उन्हें इसे लागू करवाने के पूरे पूरे अधिकार व फ़र्ज़ हासिल हैं। यदि ये लोकतंत्र के नाम पर सत्ता सुख के हकदार है तो उन्हें कानून मदों की अनदेखी की सज़ा भी  संवैधानिक धाराओं का हिस्सा है। अब बड़ी बात ये है कि पंजाब की सरकार को संगरूर में चार मासूमों की दर्दनाक मौत के बाद ही क्यों स्कूल वैनों में खामीयां दिखाई दी। यह कानून तो पहले से है। या फिर सिस्टम कागजों में चलता रहा है। उप्पर से पंजाब की बेवकूफ सरकार के नुमांइदे प्रेस बयान जारी करके रोज़ाना नियमो से कोरी स्कूल वैनों पर कार्यवाही के बयान जारी कर सरकारी बेशर्मी का बखान कर रहे हैं। इससे स्पष्ट तौर पर पंजाब सरकार की बेवकूफ कार्यप्रणाली उजागर हुई है। माननीय सर्वोच्च् न्यायलय व उच्च न्यायालय सरकारों की नालायकी का सख्त संज्ञान लेकर  सत्ताधारियो व अधिकारियो के सख्त निर्देश जारी करे। जिनका धरातल तुरन्त अमलीजामा संभव हो।

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