13 February 2020

अंदाज़-ऐ-नजरिया (सुबह की कलम से)

- इकबाल सिंह शांत-
जनाब, दुनिया बनाई तो रब्ब ने है, पर यह चलती 'नजरिये' से दोस्तो। दुनिया में नजरिये-नजरिये का ही अंतर है वरना सभी अच्छे है और कोई बुरा नहीं। खुदा की खुदाई और भगवान की कुदरत है साहिब, यदि सब का नजरिया एक जैसा हो जाये तो इसे बनाने वाले का मनोरंजन
क्या रहेगा। उदाहरण के तौर पर किसी को बकरा काटने से रोजगार मिलता है और किसी के लिए ऐसा करना सबसे बड़ा पाप है। बेचारे बकरे के जीवन का अंत और गोश्त को खाने वाले की जीभ के लिये चन्द पलों के स्वाद। देखिए, अब इस छोटी सी बात में चार नजरिये घुस आये। अब इनमे से गलत और सही कौन का फैसला भी नजरिये पर आधारित है। वहीं जैसे गली में कूड़ा उठाने वाला व्यक्ति किसी की नज़र में 'कूड़े वाला' होता है। किसी को वो सफाई वाला 'फरिश्ता' लगता है। यही सब देश-दुनिया, धर्मो, जात, वर्गो, परिवारों, सियासी लोगों, गरीब-अमीर और मर्द-औरत के बीच पनपते रिश्तो व तनाव का आधार 'नजरिया साहिब' ही हैं। पत्रकार भी विपक्ष में बैठे नेताओं को 'बब्बर शेर' दिखाई देते है और सत्तासीन सियासत उन्हें 
सबसे बड़े विरोधी (इसमे राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया  शामिल नहीं है) के रूप में देखती है। जबकि पत्रकार का फ़र्ज़ और बुनियादी काम ही जनता की समस्याओं और मुद्दों के प्रति डट कर लिखना है। छोड़िये साहिब, मैं किन बातों को लेकर बैठ गया। आप ने कौन सा हमारी बात पर अमल करना है। आप को तो लच्छेदार बातों और मुंह के मीठे राजनेता पसन्द है। जो पहले तुम्हें पुचकारते हैं और फिर आपकी छाती बैठ कर आप ही की मूंग दल देते हैं। चंद वर्षो में सौ से करोड़ों में पहुंच जाते हैं। शायद आप जनता इसी काबिल हैं। आपको आपके हालात मुबारक और दिल्ली वालों को उनका केजरीवाल। क्योंकि दिल्ली के नतीजे भी नजरिये पर आधारित हैं। उनको विकास का आजमाया पैटर्न जच गया। अब बात को नीचे की दो लाइनों से विराम देते है। क्योंकि बात का आगाज़ भी इन लाइनों को पढ़ कर हुआ था। जो आज सुबह-सुबह एक दोस्त द्वारा भेजी गईं।.... 
"पत्थरों को शिकायत है कि पानी की मार से टूट रहे हैं वे.....
और पानी का गिला ये है कि पत्थर उन्हें खुलकर बहने नहीं देते.."
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