30 January 2020

स्टिकर कल्चर और 'बागीयत'

                                                   - इक़बाल सिंह शांत -
देखो भाई, हमने तो अपने गाड़ी से प्रेस का स्टिकर हटा कर खुद पर लागू कर दिए माननीय पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश। यदि किसी और भाई बंधु ने माननीय आदेशों वाली इस मुहिम का हिस्सा बनना है तो उनका तहदिल दिल से स्वागत है। बाकी मर्ज़ी है आपकी, क्योंकि आगामी दिनों में यह रुतबा सड़को पर खाकी के रौब
का शिकार बन सकता है और आपकी जेब भी हल्की कर सकता है। वैसे गत 18 जनवरी को सिरसा प्रवास के दौरान में अपने पत्रकार साथी राजीव से इस संदर्भ में व्हीकलों पर वी आई पी प्रैशर वाले स्वभाव चर्चा कर रहा था। पुलिस और प्रेस के स्टिकर मामले पर भी काफी संवाद हुआ। यह अच्छा कदम है पर कहीं यह भी माननीय अदालतों के अन्य आदेशों व्हीकलों के काले शीशे, सख्त टैफिक नियमों व धार्मिक स्थानों के स्पीकरों की ऊंची आवाज पर पाबंदी व बगैर कमर्शियल परमिट के लोडिंग करने वाले ट्रैक्टर-ट्राली सहित अनगिनत जायज बंदिशों वाले अनेकों निर्देशों की तरह बेमायने होकर ना रह जाये। क्योंकि कानूनी मान्यताओं के प्रति हमारे लोगों की सोच सरदार भगत सिंह पडौसी के घर पैदा हो व शहीद वो कहलाएं जैसी हैं। हमारा प्रशासन भी निककमेपन व लापरवाही का शिकार है। हालात इतने बदतर होते जा रहे है कि सार्वजनिक सोच गंदगी के कीड़े जैसी हो गई है। मनुष्य में हमेशा से दूसरों से बेहतर दिखने की ललक रही है पर पिछले एक डेढ़ दशक से सूचना तकनीक के बढ़ते क्रांतिकारी प्रभाव के कारण जागरूकता बढ़ी हैं, जो आगे चल कर अब बेशर्मी व भीड़ तंत्र का रूप ले गई है। जो सबसे खतरनाक है। हर इंसान खुद को मानसिक व बौद्धिक तौर मजबूत करने की बजाय पहरावे, औछी साज सज्जा व व्हीकल आधारित सुंदरता को असल कामयाबी मानने लगा है। मुझे याद है कि मैं पिछले वर्ष बठिंडा में अपने पुत्र युवदीप को कोचिंग के लिये कमरा किराये दिलवाने हेतु गया। वहाँ एक कोठी के आगे किराये हेतु खाली कमरे की तख्ती लगी देख उसके अंदर चले गए। वहां मकान महोदया के लड़के ने कमरे किराये देने के संदर्भ में अपनी अध्यापक माता से फोन पर पुछा। दूसरी तरफ से अध्यापक माता का सवाल से भरा जवाब था कि यदि लड़के के सिर के बाल लोफरों की तरह काटे हुये है तो कमरा देने से इनकार कर दे। खुशकिस्मती से युवदीप की हेयर कटिंग सादा थी और उसे उस सुंदर सी कोठी में कमरा मिल गया। कहने का भाव सादगी से भी सम्मानजनक जीवन जिया जा सकता है। मैने उस दिन अपने बेटे की आंखों में सादगी के प्रति एक चमक देखी, जिससे मुझे बतौर पिता काफी संतुष्टी व सकून हासिल हुआ। हकीकत का कड़वा सच है कि हम भारतीयों की सोशल स्कूलिंग जीरो लेबल की है। बात सिर्फ व्हीकल पर लगने वाले स्टिकर की नही हैं साहिब। हालांकि मेरी
स्कूटी और मोटर साइकल पर प्रेस का चिन्ह नहीं लगाया हुआ है। मेरी कार पर स्टीकर रूटीन में सात आठ वर्ष से लगा हुआ था। जिसे मैंने अदालती फैसले की जानकारी मिलने के तुरन्त बाद हटवा दिया। दिक्कत है कि हमारे सियासी, समाजिक हालातों को वी।आई। पी। लुक का चस्का लग गया है। आज कल गली मुहल्लों में सिर पर बालों के बेतुके डिज़ाइन व फ़टे हुए डिज़ाइन वाली जीन्स की पेंटें बहुत गुस्सा दिलाते है। मैं अक्सर टोकता नौजवानों को। उनके पास कोई जवाब नही होता। बड़ी दिक्क्त है कि ज्यादातर आम लोग, सही व् सिद्धांतवादी व्यक्ति का समर्थन नहीं करते और गलत लोगों के साथ डट कर खड़े दिखाई देते हैं। ऐसे में हर जायज आवाज अकेलेपन की शिकार होकर दब जाती है।आज देश में सरकारों के लोक विरोधी/तुगलकी फैसलों पर बुलन्द आवाज उठा कर संघर्ष चलाने वालों को मुठी भर बागी, देशद्रोही व पाकिस्तानी तक करार दे दिया जाता है। शाहीन बाग व जे.एन.यू जैसे हालातों के लिये कौन जुम्मेदार है। यह भी सोचने जैसा गंभीर विषय है।
     मौजूदा विषय पर वापिस आते हुए  माननीय अदालत का फैसला बिलकुल सही है कि व्हिकलों पर झूठे सच्चे ओहदों के स्टिकर और प्लेटें लगा कर समाज को दबदबा दिखने का रिवाज़ सा चला हुआ है। माननीय अदालत से अपील है कि वे ऐसे क्रांतिकारी निर्णयों पर लगातार नज़रशानी के लिए प्रशासनिक व जनता के नुमाइंदों पर  आधारित कमेटिया गठित करे, व हाईकोर्ट में ऐसा विंग की स्थापना करे। ताकि जागरूक लोग ऐसे मामलो को तुरंत उस विंग के ध्यान में लेकर उन नियमों को जिंदा रखने में सहायक बन सकें। क्योंकि प्रशासन व प्रदेश सरकार तो माननीय अदालत के निर्देशों को घर के दरवाजे पर 85-90 साल बजुर्ग की तरह मानता है। जिसे समाजिक मर्यादा के तहत उसे 'घर का कुंडा' अर्थात 'डंडे वाला माननीय रखवाला' तो कहते है पर उसकी बात पर कोई गौर नहीं करता।
       मुल्क के सरकारी दफ्तरों में अदालती निर्देशों की फाइलें धूल व दीमक का शिकार बन रही हैं जिनका धरातल पर कोई वजूद दिखाई नहीं देता। दोस्तो अब यह पोस्ट पढ़ने के पश्चात मुझे "पाकिस्तानी" मत करार दे देना। क्योंकि हम तो बागी हैं दोस्तो, हर अच्छे व स्वच्छ समाज के लिए "बागीयत" लाजमी है। भारत मे गलत/सही का बहुगिनती या धर्म जात के आधार पर होता है। इस मामले में हम बागी लोग " सुपर अल्पसंख्यक" हो जाते है।
बागीयत का लहज़ा ऐसा है कि उसमें शायद आप बहुत अमीर तो ना बन सके पर शहीद उधम सिंह, शहीद सरदार भगत सिंह के विचारों के वारिस जरूर कहलवा सकते हैं। यदि आप स्पष्ट बागी नही बन सकते तो बागी सोच के हिमायती ही बन जाइये, मुल्क संवर जाएगा। हर जगह बागीयत भाव समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ चन्द मिंट जरूर बात कीजिये व गली मुहल्ला सत्तर पर लामबन्द होइए।आप चन्द दिनों में खुद की आवाज़ में खुद में खास महसूस करने लगेंगे। वह व्हीकल पर लगे स्टीकरों से कई गुना वी आई पी लुक होगी। खुद को खास बनाने के लिए यह समय आप अपनी दुकानों के बाहर सड़क पर रोजाना सुबह-शाम सामान रखना बंद करके बचा सकते है। शायद आपको ध्यान नहीं कि आप समान दुकान से बाहर रखने व दुबारा अंदर रखने में प्रति महीना कम से कम 60 घण्टे खराब करते है। साल भर के यह हुए 720 घण्टे। यदि आप रोजाना 10 घण्टे प्रतिष्ठान पर कार्यरत रहते है तो आप पूरे एक साल में अपने कार्य समय के लगभग दो महीने दुकान से समान अंदर बाहर करने में बिता देते हैं। यदि आपकी 50 हज़ार रुपये प्रति महीना आमदनी है तो सीधे तौर प्रति वर्ष एक लाख रुपये के घाटे में चल रहे है। मतलब जिंदगी भर में 30-40 लाख का मुफ्त में घाटा। ऊपर से समान सड़क व गली रोक कर बाजार को तंग व बंद के हालातों से अपनी दुकान तक ग्राहक के पहुंचने के रास्ते को बंद कर देते है। इसके अतिरिक्त समाज या कानून की नज़र में मुफ्त में आरोपी और पता नही क्या-क्या।  फिर दुकानदार आपस में बैठ कर आर्थिक मंदी की चर्चा करते हैं।
      ज्यादातर सरकारी अमला दफ्तरों में काम करके राजी नही हैं। उन्हें तनखाह तो जन्मजात हक लगती है और ऊपर की कमाई की ललक 24 घण्टे बनी रहती है। सिर्फ बातों से तरक्की नहीं आती साहिब, अपने दिल को तंदरुस्त रखना है तो जिगर का ध्यान रखना ही होगा। क्योंकि जब जिगर बेवस हो जाता है तो ही दिल की तरफ गंदगी फेंकता है और उसे ही हम कोलेस्ट्रॉल या थोड़ी आगे जाकर नाड़ी ब्लॉकेज का नाम दे देते हैं। कानून वाली "बागीयत" को अपनाइये और सुंदर भविष्य के लिए कनाडा अमरीका की तरफ नही देखना पड़ेगा। भारत में अमीरी भी बहुत है। क्योंकि किसी बजुर्ग ने कहा है कि धरती हर जगह दौलत ही दौलत बिखरी हुई है, बस देखने वाली आँख (परख) चाहिए। भारत में सुंदर और शालीन लड़कियां भी बहुत है। जरूरत है, बस खुद काबिल बन जाइए। जीवन में नौकरी, लड़की, गाड़ी और स्टिकर वाला वी आई पी लुक खुद व खुद आ जा आयेगा और स्टिकर कि जरूरत भी नहीं रहेगी। -इक़बाल सिंह शांत "बागी"  93178-26100
  

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