19 April 2020

क्या मध्य वर्ग भारत की 'नाजायज' औलाद है ?

- 94.16 प्रतिशत करदाता मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा की कगार पर
- ज़िंदगी में रौशनी की किरण फीकी पड़ने के कारण डिप्रेशन का बढ़ रहा घेरा

                                           इकबाल 'शांत'

गरीबों और अमीरों के प्रति हद दर्जे के सियासी 'प्यार' के चलते भारतीय आर्थिकता की असली रीढ़ की हड्डी मध्य वर्ग बेहद मानसिक परेशानी में है। कोरोना वायरस के चलते लॉकडाऊन के दौरान मध्य वर्ग को सरकारी बेरुखी का खूब एहसास हो गया है। उल्लेखनीय है कि भारतीय इनकम टैकस विभाग की वैबसाईट के अनुसार 94.16 प्रतिशत आम लोग करदाता हैं। देश
का शहरी और कस्बा आधारत मध्य वर्ग आवाम में से डिप्रेशन के मामले बढ़ने लगे हैं। पहले से बुरी आर्थिक हालत के कारण मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा गरीबी की कगार पर है। उसको सरकारी के खजाने से कहीं रोशनी की एक किरण भी दिखाई नहीं देती। आस्था-उम्मीद वाली कुदरती कृपा वाले किवाड़ आज-कल तालाबंद हैं। केंद्र सरकार ने करोना संकट में गरीबों के लिए अन्न भंडार और आर्थिक मदद के रास्ते खोले हैं। दूसरे तरफ़ देश में अथाह खरीद शक्ति के साथ सरकारी खजाने में टैक्स का बड़ा योगदान डालने वाले मध्य वर्ग के लिए सरकार ने एक पैसे का ऐलान भी नहीं किया गया। मध्य वर्ग के उस हिस्से तरफ किसी ने देखने तक की कोशिश नहीं की गई, जो कि पक्के मकानों में बुनियादी ज़रूरतों से जूझ रहा है। जिनकी की रसोईयें में से राशन ख़त्म हो चुका है या ख़त्म होने की कगार पर है। शहरी और कस्बा आधारत मध्य वर्ग छोटी दुकानों और छोटे कारोबारें पर आधारत है। महामारी ने इनके काम-धंधे ठप्प कर दिए हैं। सरकार की अनदेखी के  शिकार इस वर्ग के दरमियाने व् और निचले लोगों को रोजी-रोटी से ले कर बिजली, पानी, स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा, घर -परिवार तक कम से कम दर्जनों फ़िक्र हैं। जबकि गरीब को पल पल पर सुविधा है, जबकि अमीरों को किसी चीज़ की कमी नहीं। खुद को अमीरों की श्रेणी में दर्शाने वाला उच्च मध्य वर्ग का उपरला तबका भी एक पायदान खिसक कर नीचे आने की राह पर है।

    लॉकडाऊन और कर्फ़्यू के दौरान सरकारों और समाज सेवी संस्थाओं ने गरीबों के चूल्हे जलते रखने के लिए जी-जान लगा दी, जो कि अच्छी बात है पर गरीबों की हालत भी बेहद बदतर है, परन्तु मध्य वर्ग में बुरी आर्थिकता वाले परिवार सामाजिक शर्मसारी के कारण न ख़ुद को गरीब बता कर राशन और आर्थिक मदद माँग सकते हैं और न ही किसी के पास अपनी अंदरूनी हकीकत बयान सकते हैं। ऐसे हालातों में मध्य जैसी परिवारों पर मानसिक परेशानी का परछाई अधिक रहा है। आंकड़ों से मुताबिक देश में करीब 35 -40 करोड़ करीब मध्य जैसी हैं। आर्थिक मंदहाली में से गुज़रते शहरी और कस्बाई मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा गरीबों वाली हालत में है। 
      बीते परसों एक छोटा दुकानदार घर से काफ़ी परेशानी हालत में एक पुलिस नाके पर पहुंच गया और चीखने-चिल्लाने लगा। यदि वहां तैनात पुलिस मुलाजिम उसे ना संभालते तो हताश व्यक्ति किसी राह चलते व्हीकल  के नीचे आ जाना था। लॉकडाऊन की बढ़ती मियाद के चलते मध्य वर्ग की परेशानियों का बड़ा विस्फोट देश में कोरोना से अलग आर्थिक महामारी बन सकती है। विश्व श्र्म संस्था का कहना है कि कोरोना संकट के कारण भारत में 40 करोड़ मज़दूर गहरी गरीबी में धँस जाएंगे। 
     भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी मुद्रक नीति रिपोर्ट में कोरोना वायरस को भविष्य पर काली परछाई करार दिया गया है जिससे समूचा आर्थिक ढांचा बिगड़ने का अंदेशा है। इससे स्पष्ट है कि महामारी के सर्वोच्च स्तर पर पहुँचने से देश में करीब 10 से 15 करोड़ मध्य वर्गीय लोग गरीबी रेखा की सूची में आ जाएंगे। 
 जिन्हे सरकार से मुफ़्त आटा -दाल, गरीबों वाली अन्य सुविधाओं के लिए ख़ुद को बी.पी.ऐल स्तर का साबित करन के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ेगा। मध्य वर्ग की खंगाली गई ज़मीनी हकीकत काफ़ी भयानक है। बहुत से लोगों के पास बैंक खातों में बचत के नाम पर 15 -20 हज़ार रुपए से अधिक नहीं होती। उनके रोज़गार बैंक लिमटें और कर्ज़ आधारत हैं। अब घरबंदी के कारण रोज़गार पिछड़ गए हैं। सरकार द्वारा बैंकी कर्ज़े वग़ैरा मुलतवी तो किये गएँ हैं परन्तु बैंकों का ब्याज का मीटर सरपट दौड़ रहा है।

        भारत चाहे काफ़ी कोशिशों के पश्चात संसारिक स्तरीय समस्या में शायद बड़े नुक्सान से बच जाये परन्तु अमीर-गराब बनाम मध्य वर्ग वाले दोहरे कानून का अर्थचारा कम से कम डेढ़ दशक पीछे जरूर चला जायेगा। महामारी उपरांत सरकारी टैकस भी दोहरी महामारी के तौर पर परेशानी का सबब बनेंगे।
    आम लोग के पास कई महीनों तक घरों में लॉकडाऊन के अंतर्गत जीवन-यापन के लिए पूँजी या साधन नहीं हैं। कई स्थान पर मंदी आर्थिक हालत के कारण आत्महत्याओं की रिपोर्टें हैं।
   समाज शास्त्र के जानकारों का कहना है कि देश का सामाजिक और आर्थिक ढांचा-वेशभूषा मध्य वर्ग पर निर्भर है। इस वर्ग की 75 -80 प्रतिशत खरीद शक्ति के कारण सरकारें को पल -पल पर भरपूर टैकस मिलता है। मध्य वर्ग का अंदरूनी दर्द जानने मारने के लिए अलग-अलग शहरों -कस्बों में लोगों के साथ संपर्क किया गया। उनकी बयाने हालत ने रूह कँपा दी। कुछ का कहना था कि रोज़गार और गृह निर्माण के लिए 10-15 लाख रुपए के लिए बैंक कर्ज़ है। किसी ने माँ बाप और ख़ुद की गंभीर बीमारी के ऊपर से कोरोना संकट को जीते-जी मौत का बिगुल बताया। सिरसा के राम लाल नामक व्यक्ति ने कहा कि वह तो पहले ही 15 लाख रुपए के कर्ज़े नीचे है और उप्पर से रोज़गार बंद होने से बैंक डिफालटरी के हालात बनने से छत चले जाने का अंदेशा बन गया है। मलोट के सुखविन्दर सिंह ने कहा कि देश में मध्य वर्ग को फ़िज़ूल समझ कर सारे आर्थिक बोझ उसी पर डाले जाते हैं। सुविधा  के नाम पर उसके लिए सरकारें के पास कुछ भी नहीं है। डबवाली निवासी गौरव कुमार का कहना था कि सरकार को गरीबों के इलावा मध्य वर्ग की मदद के लिए

कदम उठाने चाहिए। बहुसंख्या मध्य वर्ग हफ़्ते -दो हफ़्ते के आर्थिक संसाधन चलाने तक सीमित हैं। यदि हालात न सँभले तो आगामी महीनों में सड़कें पर मानसिक परेशानी में घिरे आम लोगों की कतारों देखने को मिल सकतीं हैं। चार्टड अकाउँटैंट गोबिंद सिंगला ने कहा कि यदि सरकार ने मध्य वर्ग को राहत नहीं दी तो देश का आर्थिक ढांचा गड़बड़ा जायेगा। अभी स्थिति को ना संभालने से हालात बेकाबू हो जाएंगे। 
  भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया का कहना था कि दक्षिणी कोरिया, जापान, रूस और चीन में मध्य वर्ग के जीवन को बेहतर बनाने हेतु अच्छी नीतियाँ बनाईं हुई हैं। जबकि भारत में मध्य वर्ग के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है। अब संकट से घिरे समय में केंद्र सरकार को मध्य वर्ग के लिए राहत भरा पैकज पुरानी गलतियों को सुधारना चाहिए। इससे महामारी के उपरांत देश की आर्थिकता को फिर खड़•ा करन के लिए बड़ी मदद मिलेगी। - इक़बाल.शांत@जीमेल.कॉम 

No comments:

Post a Comment